25 जुल॰ 2019

जानें क्या है 16 संस्कार और क्या है इनका महत्व

16 Sanskar | जानें क्या है 16 संस्कार और क्या है इनका महत्व

हमारे 'hindu dharma' मे यानी "सनातन धर्म" मे 16 संस्कार होते है।हर मनुष्य को जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत इन सोलह संस्कार से होके गुजरना पड़ता हैं हिन्दू धर्मं का यह पवित्र संस्कार जन्म से पहले गर्भधान में ही हो जाती हैं।

हमारा धर्म इन्ही solah sanskar संस्कारो पर ही टीका है ऋषि मुनियोने मनुष्य के जीवन शैली को सुगम और सरल बनाने के लिए ही  16 संस्कार की रचना की है।वैसे तो हमारे धर्म मे कई प्रकार के संस्कार  है।
      पर आज हम बात करेंगे मुख्य 16 संस्कार के विषय मे। उन 16 संस्कार के नाम इस प्रकार है-


16 Sanskar | हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार | solah sanskar
हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार
  1. गर्भाधान
  2. पुंसवन
  3. सिमन्तोन्नयन
  4. जातकर्म
  5. नामकरण
  6. निष्क्रमण
  7. अन्नप्राशन
  8. मुंडन
  9. कर्णवेध
  10. विद्यारंभ
  11. यज्ञोपवीत
  12. वेदारंभ
  13. केशांत
  14. समावर्तन
  15. विवाह
  16. अंत्येष्टि

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1.गर्भाधान संस्कार हमारे धर्म का सबसे पहला संस्कार गृहस्थ जीवन का सबसे पहला उद्देस्य संतान प्राप्ति का है।सिर्फ संतान प्राप्ति ही नही ,बल्कि उत्तम संतान  प्राप्ति हेतु गर्भाधान संस्कार किया जाता है शुभ दिन को ध्यान में रखकर ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिए।

2. पुंसवन संस्कार  गर्भ में पल रहे शिशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाना वाला संस्कार यह संस्कार यह संस्कार गर्भाधान के तीन महीने बाद किया जाता  है।

3.सिमन्तोन्नयन संस्कार यह संस्कार गर्भपात रोकनेके लिए किया जाता है और साथ ही माता की रक्षा के लिए भी किया जाता है।

4.जातकर्म संस्कार इस संस्कार को बच्चे के नाल छेदन से पहले किया जाता है पहली बार दुनिया  के संपर्क में आने वाले शिशु के उत्तम स्वास्थ्य एवम् दीर्घायु की कामना से शहद  घी आदि चटाने का  नियम है।

5.नामकरण यह संस्कार शिशु के जन्म के ग्यारहवें दिन में होता है हमरे सनातन धर्म में बालक के जन्म से 10 दिन तक अशौच यानी सूतक माना गया है। इसलिए ग्यारह दिन में घर शुद्ध करके पूरे घर मे गुमूत्र का छिड़काव करके पंडित जी के माध्यम से बालक का नाम रखा जाता है।

6.निष्क्रमन संस्कार निष्क्रमन मतलब बाहर निकलना इस संस्कार में बालक को घर से बाहर निकलते है फिर  सूर्य और चंद्रमा के दर्शन कराते है सूर्य और चंद्रमा के दर्शन कराने के पीछे का कारण यह है कि वह बालक तेजस्वी बने विनम्र बने और ज्ञानी बने।

7.अन्नप्राशन संस्कार यह संस्कार जब बच्चे को पहली बार अन्न खिलाते है तब किया जाता है बालक के जन्म के छठे महीने में शुभ मुहूर्त देखकर इस संस्कार को किया जाता है।

8.मुंडन संस्कार (चुड़ाकर्म)यह संस्कार शिशु के जन्म के तीसरे अथवा आठ  वर्ष के बीच कराया जाता है।

9.कर्णवेध संस्कार  यह संस्कार शिशु को बहुत सारी बीमारियों से बचाने के लिये और आभूषण धारण कराने के लिए किया जाता है।

10.विद्यारम्भ  संस्कार शिशु जब पांच वर्ष का हो जाता है तब यह  संस्कार किया जाता है  बालक को पहली बार अक्षर ज्ञान  कराने के लिए ताकि वो भविष्य में पड़ लिखकर अच्छा बने पर आजकल यह संस्कार बहुत सारे लोग तीन वर्ष में ही करादेते है।

11.यज्ञोपवीत संस्कार इस संस्कार को करने के बाद बालक दुइज कहलाता है,बालक शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है।

12.वेदारंभ वेद पड़ने के लिये,धर्म ग्रंथ आदि पड़ने के लिए किया जाने वाला संस्कार।

13.केशांत बालक जब 16 वर्ष का हो जाता है उस समय पहली बार दाड़ी मुछ मुड़ाने वाला संस्कार।

14.समावर्तन संस्कार  बिद्या अध्ययन पूरा करके घर लौटने पर किया जाने वाला संस्कार।यह संस्कार ब्रम्हाचर्य की समाप्ति का सूचक है।

15.विवाह संस्कार वर वधु के विवाह बंधन  में बंधने और आगे गृहस्थ जीवन जीने वाला संस्कार।

16.अन्तेष्टि  संस्कार  मरने के बाद अपने पुत्रों दुआरा किया जाने वाला संस्कार।

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