29 सित॰ 2024

नवरात्र में मिलेगी खूब सफलता बस 9 दिन देव्यपराध क्षमापन स्तोत्रम् का पाठ करें

देव्यपराध क्षमापन स्तोत्रम् | Devyapradh Kshamapan Stotra

इस स्तोत्र में माता से एक बेटा प्राथना करता है की हे माता बेटा कितना भी नालायक हो लेकिन माँ अपने बेटे से जरूर प्यार करती है देव्यपराध क्षमापन स्तोत्रम् (Devyapradh Kshamapan Stotra) से हम सभी को एक सिख लेनी चाहिये की हम अपने माँ बाप से प्यार करें।  जब तक माँ बाप जिन्दा है उनकी खूब सेवा करें माँ बाप के मरने के बाद तो कोई भी बेटा माँ बाप का पिंड दान करता है। सच्चा बीटा तो वही है जो अपने माता पिता की जिन्दा रहते सेवा करे। नवरात्र में आपको माता रानी का पूजन नहीं आता है तो रोज सुबह और शाम Devyapradh Kshamapan Stotra का पाठ करे आपका कल्याण होगा। 

Devyapradh Kshamapan Stotra

Devyapradh Kshamapan Stotra | देव्यपराध क्षमापन स्तोत्रम्



न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो

न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं

परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम ॥१॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया

विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।

तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः

परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।

मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥३॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता

न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।

तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥४॥

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया

मया पच्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।

इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता

निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम ॥५॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा

निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं

जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥६॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो

जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं

भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम ॥७॥

न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे

न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै

मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥८॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः

किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।

श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे

धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥९॥

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं

करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।

नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः

क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥१०॥

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।

अपराधपरम्परावृतं न हि माता समुपेक्षते सुतम ॥११॥

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।

एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥१२॥

॥इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्॥

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