29 मई 2019

Biography Swami Vivekananda | स्वामी विवेकानंद का एक सच

 Biography Swami Vivekananda | स्वामी विवेकानंद का एक सच 
 

सबसे छोटी उम्र में ज्ञान प्राप्त करने वाले समस्त विश्व के समक्ष अपनी पहचान बनाने वाले स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)  को कौन नहीं जानता !

About Swami Vivekananda | स्वामी विवेकानंद विषय में 

          जन्म :    १२ जनुअरी १८६३ 
जन्म स्थान :    कोलकाता 
    पूरा नाम :   नरेन्द्र नाथ दत्ता 
         शिक्षा:   स्कॉटिश चर्च कॉलेज  सन १८८४
                       विध्यासागर कॉलेज  सन १८७१ -१८७७
                       प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी    
पिता का नाम :विश्वनाथ दत्ता 
माता का नाम :भुवनेस्वरी देवी 
               मृत्यु :  ४ जुलाई १९०२
 
Biography Swami Vivekananda | स्वामी विवेकानंद का एक सच

आज के दौर में हर कोई स्वामी विवेकानंद Vivekananda जैसा बनना चाहता है उनके बताए हुए रास्तों पर चलने की कोशिश करता है ऐसे तपस्वी ऐसे ज्ञानी स्वामी विवेकानंद Biography Swami Vivekananda के विषय में आइए हम कुछ चर्चा करते हैं।

Swami Vivekananda Birth| स्वामी विवेकानंद का जन्म                                         


स्वामी विवेकानंद Swami Vivekananda का नाम पहेले नरेन्द्र नाथ दत्त था लोग इन्हें प्यार से नरेंद्र बुलाते थे ।उनका जन्म  एक कायस्थ परिवार में  12 जनवरी 1863  को अंग्रेज शासन काल में कोलकाता में बंगाली परिवार में हुआ था। अनेको ज्ञानी पंडित और विद्वानों एसा भी कहेना हे की स्वामी जी का जब जन्म हुवा तो उस समय  मकर संक्रांति का दिन था।

Swami Vivekananda family | स्वामी विवेकानंद का परिवार




 विवेकानंद का परिवार पूरी तरह से शिक्षित था नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त भी काफी शिक्षित थे। वह हाईकोर्ट में

अधिवक्ता के रूप में कार्यरत थे । विश्वनाथ दत्त  संस्कृत और  पच्मिम की सभ्यता के भी जानकार थे । उनके माता भुवनेश्वरी धार्मिक प्रवृत्ति की थी।स्वामी विवेकानंद  के  9 भाई बहन बहन थे।नरेंद्र के दादाजी संस्कृत के प्रकांड विद्वान  थे।



Swami Vivekananda education | विवेकानंद की शिक्षा
Swami Vivekananda education |स्वामी विवेकानंद की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद 


जब विवेकानंद नरेंद्र छोटे थे तो बहुत ही बदमाश और शरारती थे साथ ही साथ वह पढ़ाई लिखाई और खेलकूद

में भी काफी आगे  थे। उनका संगीत में भी काफी पकड़ थी वह गायन वादन नृत्य आदि किया करते थे।

बचपन से ही नरेंद्र का जीवन आध्यात्मिक जैसा था। नरेंद्र साधु-संत फकीर आदि को बहुत मान सम्मान किया

करते थे

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यदि कोई संत फकीर उनसे कुछ वस्तु मांग ले  और वह वस्तु यदि उनके पास हो तो वह बिना

 सोचे समझे उस संत या दे दिया करते थे।

सन 1871 में जब नरेंद्र 8 वर्ष के थे  तो वह ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटियन इंस्टीट्यूट से  अध्यन करना प्रारंभ किया। सन 1877 में नरेन्द्र अपने परिवार के साथ रायपुर चले गये ।

 सन1879  नरेंद्र पुनः अपनी जन्मभूमि कोलकाता लौटआए।

 सन 1879 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण किया फिर कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश किया।

फिर 1 साल बाद नरेंद्र ने व्हाट इस सर्च कॉलेज में दाखिला लिया

और फिलोसोफी पढ़ना प्रारंभ किया साथ ही वह पश्चिमी सभ्यताओं को भी सीखने लगे।

 यूरोपियन देशों के इतिहास को जाना। 1884 में उन्होंने b.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की। नरेंद्र की स्मरण शक्ति

अद्भुत थी इसीलिए उनको  पढ़ाई में कुछ परेशानी नहीं हुई

नरेन्द्र  जहां भी पढ़े जितना भी उन्होंने अध्ययन किया बड़े ही सरलता से किया किसी चीज को याद करना उनके

लिए चुटकियों का काम था।

Swami Vivekananda Biography | स्वामी विवेकानंद परिचय 


Swami Vivekananda और स्वामी रामकृष्ण परमहंस का मिलन 

उनकी बढ़ती हुई उम्र के साथ-साथ उनका ज्ञान उनकी  जिज्ञासा उनकी अद्भुत तर्क करने की कला और ईश्वर

के प्रति आस्था भी बढ़ती ही जा रही थी, इसी विश्वास इसी आस्था और जिज्ञासा के कारण उनका मिलन सन

1881 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुआ। हालाकि रामकृष्ण से मिलने से पहेले कुछ समय के लिए ब्रम्ह

समाज से भी जुड़े थे लेकिन उनको वहा शांति नहीं मिली ।

 श्री राम कृष्ण परमहंस मां काली के अलौकिक भक्त थे। नरेंद्र को  कुछ नया जानने और सिखने की  इच्छा के

कारण उन्होंने राम कृष्णा परमहंस से तुरंत प्रश्न पूछा नरेंद्र रामकृष्ण से पूछते हैं क्या आपने भगवान को देखा है?

नरेंद्र ने जिस प्रकार से रामकृष्ण से प्रश्न किया ठीक उसी प्रकार से रामकृष्ण परमहंस ने भी उत्तर दिया हां मैंने

 भगवान को देखा है जिस प्रकार मैंने अभी तुमको देखा ठीक उसी प्रकार से मैने भगवान को देखा है।

नरेंद्र अचंभे में पड़ गए क्यों की नरेंद्र के इस प्रकार के प्रश्नों को इतनी सरलता से उत्तर दिया स्वामी रामकृष्ण

परमहंस ने की विवेकानंद उनके भक्त होगये।

फिर नरेंद्र और रामकृष्ण की मुलाकात होती रही नरेंद्र के हर जिज्ञासा को स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने बड़े ही

सरलता से सुलझा दिया फिर नरेंद्र ने राम कृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया। सन 1886 राम कृष्ण  का

निधन हो गया।

अपने गुरु के मृत्यु के बाद नरेंद्र की याददाश्त शक्ति और अद्भुत व्यक्तित्व के कारण उनका नाम स्वामी

विवेकानंद पड़ा स्वामी विवेकानंद ने अनेकों यात्राएं की  लोगों को प्रेरणादायक बातें बताई जीवन का

मूल उद्देश्य मनुष्य का कर्तव्य आदि के विषय में बहुत सारी  बातें बताई जिनका अनुसरण आज भी लोग

करते हैं उनको आदर्श मानते हैं।

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 स्वामी विवेकानंद के अद्भुत अनमोल वचन

Swami Vivekananda Biography
Vivekananda


विवेकानंद जी के अनमोल वचन जो कोई भी अपने जीवन में अपनाता है वहा निश्चित ही सफलता की चरम सीमा  में पहुंचता है स्वामी विवेकानंद जी एक अद्भुत वक्ता थे उनकी वाणी में ऐसी आकर्षण शक्ति थी जिसकी वजह से हुए सारी दुनिया में छा गए।

  1. प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा नियम है जीवन बहुत ही सुंदर है सबसे पहले इस दुनिया में आपको विश्वास करना   होगा।
  2. इस दुनिया में जो कुछ भी है वह अच्छा है सुंदर है खूबसूरत है और पवित्र है आप कैसा महसूस करते हैं?
  3. अच्छे विचार ही जीवन का मूल मंत्र है जब तक अच्छे विचार नहीं आएंगे तब तक भगवान को नहीं पाया जा सकता।
  4. मैं हर एक में भगवान को देखता हूं किसी की निंदा और किसी को दोष  बेवजह नहीं लगाना चाहिए
  5. सामर्थ्य अनुसार दूसरे व्यक्ति की मदद करें।
  6. यदि आपका धन किसी एक आदमी का भी भला नहीं कर सकता तो आपका धन बुराई और निंदा का जड़ है।
  7. कहने सुनाने वाले लोग बहुत हैं वही करो जो तुम्हारी आत्मा कहे।
  8. खुद को कमजोर कभी मत सोचो इस दुनिया में असमर्थ कुछ नहीं।
  9. तुममे  बहुत सारी शक्तियां हैं तुम शक्तिशाली हो।अगर साधना करोगे तो सारी शक्तियां तुम्हारे ही पास में हैं।
  10. हमेशा सच्चा बन के रहो और कुछ अलग ही सोचो
  11. सब कुछ त्यागा जा सकता है लेकिन सत्य को कभी नहीं त्यागा  जा सकता।


Vivekananda Date of death |  विवेकानंद की मृत्यु 



4 July 1902 में स्वामी विवेकानंद सदा के लिए ब्रम्हलीन हुये | जिस दिन Swami Vivekananda की मृत्यु हुई उस दिन उन्होंने रोज की तरह अपनी नित्य क्रियाएँ की  रोज सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में उठाना ,पूजा  करना ,सूर्य को जल चढ़ाना ,अपने गुरु का ध्यान करना अंत में जब वे ध्यान कर रहे तो ध्यान करते करते सदा के लिए ब्रम्ह लीन हो गये 

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