17 जुल॰ 2018

Ved kya he | चार वेदों की संपूर्ण जानकारी जानिये किस वेद में क्या है

What is veda वेद क्या है


वेद क्या है (Ved kya he) यह सुनते ही हमारे मन मे एक ही ख्याल आता है की वेद ही हमारे सारे धर्म ग्रंथो का मूल है,वेद से ही सबका निर्माण हुआ है 
जिसके मुख्यत चार अर्थ होते है - 
1 ज्ञान 2 सत्ता 3 लाभ और विचारण  इसी वेद के कारण ही मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है । वेद धर्म ग्रंथ का मूल स्रोत होने के कारण इसका  महत्व अधिक है हमारा धर्म और दर्शन वेदों में स्थित ज्ञान से ओत प्रोत है।


वेद को श्रुति भी कहते है, श्रुति का मतलब यह होता है की प्राचीन काल मे गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से वेदो का अध्यन होता था, आज भी होता है।बिना गुरु (teacher)से सुने वेद कोई नही पढ़ सकता।  इसलिए वेद को श्रुति कहते है ।
गुरु ने अपने शीष्यो के सामने वेद का उच्चारण किया और शिष्यों ने अपने कान से सुना और याद किया। इसी प्रकार वेद का पठन पठान कराते ये वेद हमेसा ही शुद्ध बने रहे।

वेदों का परिचय | ved ka parichaya

वेद शब्द विद् धातु से बना है, जिसके चार अर्थ हैं-ज्ञान, सत्ता, लाभ व विचारण। अतः जिसके द्वारा मनुष्य समग्र सत्य विधाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं, विचार करते हैं और विद्वान ज्ञानी होते हैं, उसे वेद कहते है।

भारतीय संस्कृति के मूल स्त्रोत होने के नाते वेदों का महत्व और ज्यादा हो जाता है। हमारा धर्म और दर्शन वेदों में विद्यमान विचारधारा से ओत-प्रोत है। वेद आर्यों के ही नहीं, अपितु समस्त मानव जाति के लिखित रूप में उपलब्ध सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ हैं।


विश्व के विद्वानों ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि शताब्दियों तक भारतीयों ने वेदों को अपने मस्तिष्क में स्मरण रखकर उन्हें जीवित ही नहीं रखा, अपितु उस परम्परा में एक भी अन्य अक्षर का मिश्रण तक नहीं होने दिया है। वेदों को "श्रुति” कहने के पीछे भी यही रहस्य है कि प्राचीनकाल में गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से वेदों का अध्ययन होता था और वेद कंठस्त होकर जीवित रहते थे। 


गुरु ने अपने शिष्यों के सम्मुख वेद का उच्चारण किया, शिष्यों ने अपने श्रुति-पथ अर्थात् कानों के मार्ग से उसे सुना और याद रखा। कालान्तर में जब वे ही वेद-पाठी शिष्य बड़े होकर गुरु बनते थे, तो वे भी अपने नए शिष्यों को इसी प्रकार वेदों का पठन-पाठन कराते और फलस्वरूप ये श्रुति अर्थात् वेद इसी माध्यम से अक्षुण्ण बने रहे।

उन्नीसवीं शताब्दी में जब भारत पराधीन था, पाश्चात्य विद्वानों ने भारत में वेदों का अध्ययन किया। वैदिक भाषा को देखकर उन्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि ग्रीक, लैटिन, जर्मनी आदि प्राचीन भाषाओं के साथ इसका (वैदिक भाषा का) विचार साम्य है। 


अनेकों शब्द अल्प ध्वनि परिवर्तन के साथ इन भाषाओं में एक जैसे ही हैं। इस विचित्र कौतुहल को शांत करने के लिए विद्वानों ने वेदों का और गहन अध्ययन किया जिससे 'भाषा विज्ञान' का सूत्रपात हुआ। इस प्रकार विद्वानों में भाषा-संबंधी मतभेद दूर हुए और फिर एकमत से प्राचीनतम आर्य भाषा (वैदिक भाषा) की रूप रेखा का निर्धारण किया जा सका ।

वेदों के प्रकार वेद कितने प्रकार के होते है । Ved kitne hote hai 



ऋग्वेदः । Rigved 
ऋग्वेद आर्यों की सबसे अधिक प्राचीन पुस्तक है इसमें विभिन्न देवों के विषय में मंत्रबद्ध स्तुतियाँ की गई हैं ऋग्वेद दो भागों में बटा हुवा है। प्रथम अष्टक क्रम है-जो आठ अष्टकों में विभक्त हैं। प्रत्येक अष्टक में आठ अध्याय हैं। अध्यायों में भी 'वर्ग' है। वर्ग, ऋचाओं के समुदाय को कहते हैं। इसमें 5 मंत्रों का एक वर्ग होता है, ऋग्वेद में 2006 वर्ग हैं।


ऋग्वेद का द्वितीय भाग मण्डल क्रम का है, जिसमें दस मण्डल हैं। इनमें भी कई अनुवाक हैं जो मंत्र अथवा ऋचा-युक्त सूक्तों पर आधारित हैं। इस प्रकार इस भाग में कुल 85 अनुक्रमांक तथा 1017 सूक्त हैं। इसमें वे ग्यारह सूक्त शामिल नहीं हैं, जो बालखि कहलाते हैं।


ऋग्वेद के द्वितीय से सप्तम मण्डल तक का अंश वंश-मण्डल - (Family Book) कहलाता है, जिनके ऋषि क्रमशः गृत्समद, - विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज एवं वशिष्ठ हैं। पूरा नवम् = मण्डल सोम (पवमान) देवता के विषय में होने के कारण 'पवमान मण्डल' कहलाता है। विद्वानों ने इसके प्रथम व दशम - मण्डल, जिनमें 191-191 सूक्त हैं, को अर्वाचीन (आधुनिक) माना है।


ऋग्वेद में अग्नि, इन्द्र, वरुण, उषा आदि देवी-देवताओं की भिन्न-भिन्न ऋषियों ने अत्यन्त सुन्दर एवं भावाभिव्यंजक शब्दों में स्तुतियाँ की हैं। इन सूक्तों का प्रयोग यज्ञ के अवसर पर किया जाता था। यहीं पर कुछ संवाद सूक्त भी मिलते हैं, जैसे यमयमी संवाद, पुरुस्वा उर्वशी संवाद, सरमा पणि संवाद आदि,




जिनमें एकाधिक वक्ताओं ने संवाद के रूप में अपने विचार व्यक्त किये हैं। इन संवाद सूक्तों की संख्या लगभग 20 है। इनके अतिरिक्त ऋग्वेद में कई दार्शनिक सूक्त भी प्राप्त होते हैं, जिनसे आर्य ऋषियों का मौलिक चिन्तन हमारे सम्मुख प्रकट होता है।

यजुर्वेदः| yajurved इस वेद के ब्रह्मा और आदित्य नाम से दो सम्प्रदाय हैं। इन्हीं को क्रमशः कृष्ण और शुक्ल यजुर्वेद भी कहते हैं। कृष्णायजुः की प्रधान शाखा तैत्तिरीय है, इसमें गद्य और पद्य दोनों मिश्रित हैं। शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेई संहिता प्रसिद्ध है। इसमें गद्य नहीं है


यजुर्वेद में दर्श, पौर्णमास्य, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, सोमयोग अग्निष्टोम का प्रकृतियोग, सवन, एकाह, वाजपेय, राजसूय, शतरुद्रिय होम, सौत्रामणी यज्ञ, पुरुषमेघ, सर्वमेघ, पितृमेघ प्रवर्ग्ययाग आदि का वर्णन है। ये नाम विभिन्न प्रकार के यज्ञों के हैं, जो विभिन्न अवसरों पर, विभिन्न फलों की प्राप्ति के लिए, विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों द्वारा किए जाते थे।

सामवेद | samved सामवेद संगीत का वेद है इसके मन्त्र विविध स्वरों में गाए जाते हैं। सामवेद के आर्चिक और गान रूप में दो प्रधान भाग हैं। पतंजलि ने "सहस्रवर्मा सामवेदः" कहकर पुराणों का यह कथन सत्य सिद्ध किया है कि सामवेद की एक हजार शाखाएँ हैं। 



गान-प्रधान सामवेद में संगीत की विपुलता व सूक्ष्मता को ध्यान में रखते हुए यह संख्या कल्पित नहीं लगती। ऋषियों ने सामगान पद्धति को गेय, आरण्यक, ऊह औ उह्य भेद से चार प्रकार की मानी है। भारतीय संगीतशास्त्र का मूल इन्हीं सामगायनों पर आधारित है। इनके प्रस्ताव, उद्गीथ, प्रतिहार, उपद्रव व निधन रूप से 5 भाग होते हैं।



अथर्ववेद | atharwa ved को इसी लोक में फल देने वाला माना गया है। यज्ञ के पूर्ण संस्कार के लिए अथर्ववेद को नितान्त आवश्यक माना गया है। पुरोहित राजा के शान्ति और यज्ञ कार्यों का सम्पादन अथर्ववेद द्वारा ही करता है। इस वेद को ब्रह्म वेद या अथर्वागिरस वेद भी कहते हैं। अथर्व शब्द का अर्थ है अकुटिलता तथा अहिंसा वृत्ति से मन की स्थिरता प्राप्त करने वाला व्यक्ति । 



पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार सुख उत्पन्न करने वाले अच्छे जादू-टोनों के लिए अथर्वेद मन्त्रों का प्रयोग होता है, मारण तथा मोहन अभिचार मन्त्र आँगिरस कहलाते हैं। इसमें आयुर्वेद के भी महत्वपूर्ण सन्दर्भ अपनी उत्कृष्टता में प्राप्त होते हैं, जैसे विभन्न ज्वर, यक्ष्मा, विद्रध का उल्लेख, शल्यचिकित्सा का निर्देश, नाना कृमियों का सूर्य किरणों से नाश, सर्पविष का उपयोग, लाक्षा (लाख) का वैज्ञानिक विवेचन आदि। इस प्रकार अथर्ववेद में सामांन्य जनों का विवरण उपलब्ध होता है।


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