5 नव॰ 2018

Pradosh vrat ke fayde | जाने प्रदोष व्रत के चमत्कारिक फायदे

Pradosh vrat ke fayde | प्रदोष व्रत के चमत्कारिक लाभ

आपको हैरानी होगी Pradosh vrat ke fayde जानकर पहले आपको प्रदोष व्रत को समझना होगा जैसे-प्रदोष व्रत क्या हैं कब आता है ?Pradosh vrat ke labh kya hain?pradosh vrat kyu kare

हमारे हिंदूधर्म में हर एक व्रत का अपना ही महत्व है हमारे वैदिक धर्म में हर  व्रत के पीछे कोई ना कोई कथा छिपी हुई रहती हे। कथा के माध्यम से भगवान कोई ना कोई संदेश भक्तों को देना चाहते हैं इन सब कथाओं में से एक है pradosh vrat ki katha

Pradosh vrat ke fayde |जाने प्रदोष व्रत के चमत्कारिक फायदे

क्या है प्रदोष व्रत |what is pradosh vrat?

हमारे हिंदू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत की गणना प्रत्येक चंद्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन को माना जाता है, प्रदोष व्रत 1 महीने में 2 बार आती है एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में इस प्रकार प्रदोष व्रत 1 साल में 24 बार आती है।

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 प्रदोष व्रत का अपना एक सप्ताहिक महत्व भी है विशेष रूप से प्रदोष व्रत भगवान शिव  को समर्पित है यह व्रत सबसे सरल व्रत है। इस व्रत को कोई भी नारी कर सकती है और भगवान शिव से अपनी  मनोकामना को पूरा करा सकती है बड़े-बड़े संत महात्माओं विद्वानो का मत है की प्रदोष व्रत को पुरुष भी कर सकते है।

व्रत करने के पीछे कोई न कोई कारण छिपा रहता है चाहे वह व्रत अपने लिए हो या  परिवार के लिए हो या किसी और के लिए हो व्रत करना ही मनोकामनाओं को पूरा करना हैं

प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्ण त्रयोदशी तिथि को किया जाता हैं 


* रविवार  प्रदोष व्रत करने से सुख शांति व आयु में वृद्धि होती है।

* सोमवार प्रदोष व्रत करने से अपनी सकारात्मक इच्छाओं के अनुसार फल की प्राप्ति।

* मंगलवार को यह व्रत करने से शरीर निरोगी रहता है शरीर स्वस्थ रहता है। ऑल

* बुधवार वाले प्रदोष व्रत में शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति

* गुरुवार के प्रदोष व्रत करने से गुरुजनों का आशीर्वाद अपने पितरों का आशीर्वाद वह शत्रु के नाश के लिए होता है

* शुक्रवार वाले प्रदोष व्रत में जीवन में सफलता आरोग्य की प्राप्ति

* शनिवार को प्रदोष व्रत करने से बार में नौकरी में अपनी उन्नति के लिए किया जाता है

इसका मतलब यह हुआ जिसकी जैसी फल की इच्छा उसके लिए वैसी ही प्रदोष व्रत।

कथा प्रदोष व्रत की | story of pradosh vrat

story of pradosh vrat|कथा प्रदोष व्रत की

प्रदोष व्रत की एक पौराणिक कथा है उसके अनुसार एक विधवा इस्त्री थी उसका एक बच्चा था और विधवा स्त्री अपने जीवन यापन के लिए घर-घर जाकर भीख मांग ति थि।
उस् स्त्री का जीवन ऐसे ही चल रहा था । उसे एक दिन रास्ते पे एक राजकुमार मिला वह राज कुमार और कोई नहीं स्वयं विदर्भ देश के राजा का पुत्र था। उसका राज पाठ शत्रु के द्वारा छीन लिया गया था  माता-पिता मर चुके थे ।

राजकुमार की ऐसी दुर्दशा देकर उस विधवा नारी ने उस राजकुमार को अपने साथ ले जाने का फैसला कर लिया और उस राजकुमार को वह विधवा स्त्री अपने साथ ले गई।
विधवा श्री ने अपने पुत्र और राजकुमार को खूब प्यार दिया अपने पुत्र समान प्यार करने लगी। एक दिन वह विधवा  स्त्री अपने दोनों पुत्रों को लेकर शान्डिल्य ऋषि के आश्रम में चली गई।शान्डिल्य ऋषि उस विधवा स्त्री को भगवान शंकर की आराधना करने को कहा और साथ ही प्रदोष व्रत की महिमा भी कहीं।

घर जाकर उस विधवा नारी ने ऋषि शान्डिल्य  के द्वारा कहे गए प्रदोष व्रत को करने लगी धीरे-धीरे उसका जीवन सुधरने लगा  विधवा नारी पहले से ज्यादा संपन्न हो गई। एक दिन दोनों बालक वन में घूमने चले गए उस विधवा नारी का पुत्र तो घर वापस लौट आया पर वह राजकुमार वन  में कुछ कन्याओं को खेलते हुए देखा उनमें से एक कन्या अंशुमती थी। राजकुमार को वह कन्या पसंद आ गई और उसने उस कन्या से गंधर्व विवाह कर लिया।

 उस दिन वह राजकुमार घर देरी से पहुंचा दूसरे दिन  राजकुमार पुन उसी स्थान पर पहुंच गया जहां अन्सुमति अपने माता पिता के साथ बातें कर रही थी  । अन्सुमति के माता पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया और अपनी पुत्री के साथ उसके विवाह करने का फैसला कर लिया।

उस राजकुमार और अन्शुमिति का विवाह संपन्न हो गया। फिर  राजकुमार में गंधर्व देश की सेना लेकर ।विधर्व देश में आक्रमण कर दिया और अपना खोया हुआ राज्य पुन प्राप्त कर लिया और अपनी पत्नी अनुमति के साथ राज्य सुख भोग ने लगे।

इस प्रकार भगवान शंकर के आशीर्वाद से, प्रदोष व्रत के करने से उस विधवा स्त्री का जीवन सुधर गया राकुमार को खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त हुआ।

ऐसा माना जाता है उसी दिन के बाद प्रदोष व्रत की महिमा का गुणगान चारों और होने लगा, सभी लोग प्रदोष व्रत की कथा सुनने लगे और करने लगे ताकि उनको भी जीवन में भगवान शंकर का आशीर्वाद मिल सके।



किस प्रकार करना चाहिए प्रदोष व्रत | pradosh vrat kaise kare

प्रदोष व्रत को संध्या के समय किया जाता है त्रयोदशी के दिन स्नानादी करके शुद्ध वस्त्र धारण करके मनोकामनाओं को स्मरण करते हुए व्रत रखना चाहिए।

सबसे पहले गणेश की पूजा करें दीपक की पूजा करें पंच देव की पूजा करें उसके पश्चात भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें ओम नम शिवाय का जाप करते हुए भगवान शिव और पार्वती का पूजन करें। पूजन का कार्य किसी विद्वान ब्राम्हण के द्वारा हो तो अति उत्तम होता है नहीं तो यह कार्य स्वयं भी कर सकते हैं।

प्रदोष व्रत pradosh vrat के विषय में और जानकारी चाहिए तो यह वीडियो देख सकते हैं



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