22 जून 2024

रामभद्राचार्य ने बताया गलत तरीके से हो रहा है हनुमान चालीसा का पाठ नहीं मिलेगा फल

कौन है रामभद्राचार्य | Kaun hai Jagadguru Rambhadracharya

Rambhadra aacharya जी ऐसे संत हैं जिन्होंने Hanuman Chalisa को ही गलत बोल दिया आपने जो हनुमान चालीसा पढ़ा है उस Hanuman Chalisa  को Rambhadra aacharya ने गलत बताया है कौन है रामभद्राचार्य जी? और किस आधार पर उन्होंने हनुमान चालीसा को गलत बताया चलिए हम जानने का प्रयास करते हैं
hanuman chalisa ko galat bolne wale sant

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म | Jagadguru Rambhadracharya ka janma

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जिन्हें गिरिधर मिश्र के नाम से भी जाना जाता है, भारत के एक विद्वान संत, दार्शनिक, लेखक और कवि हैं। Jagadguru Rambhadracharya ka janma 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के सचीपुर गांव में हुआ था। दो महीने की उम्र में ही एक दुर्घटना में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन इसने उनके ज्ञान की खोज को बाधित नहीं किया। 



कम उम्र से ही उनकी असाधारण प्रतिभा स्पष्ट हो गई थी मात्र तीन वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, पाँच वर्ष की आयु में उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के सभी 700 श्लोकों को याद कर लिया, और सात वर्ष की आयु तक उन्होंने रामचरितमानस की 10,900 चौपाइयों और छंदों को याद कर लिया।


अपनी विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध, जगद्गुरु रामभद्राचार्य 22 भाषाओं के ज्ञानी हैं और उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें संस्कृत महाकाव्य, हिंदी टीकाएँ, वैदिक साहित्य पर विद्वत्तापूर्ण कार्य और आध्यात्मिक विषयों पर मौलिक रचनाएँ शामिल हैं। 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य की उपलब्धिया | Jagadguru Rambhadracharya ki upalabdhiya

उनकी रचनाओं में संस्कृत में रचित "कुब्जापत्रम्" पत्रिकाव्य और रामचरितमानस पर उनकी हिंदी टीका उल्लेखनीय हैं। उन्होंने अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका भी लिखी है, जो पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक मौलिक ग्रंथ है। उनकी रचनाओं की गहराई और स्पष्टता उन्हें हिंदू धर्म के एक प्रमुख विद्वान के रूप में स्थापित करती है।


विद्वत्ता के साथ-साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य आध्यात्मिक जगत में भी एक आदरणीय व्यक्ति हैं। उन्हें 24 जून, 1988 को काशी विद्वत परिषद द्वारा "जगद्गुरु" की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह उपाधि उन्हें उनके गहन ज्ञान, आध्यात्मिक निष्ठा और समाज के प्रति उनके योगदान के लिए दी गई। उन्होंने तुलसीपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में भी कार्य किया है, जो भगवान हनुमान को समर्पित एक महत्वपूर्ण मठ है।


जगद्गुरु रामभद्राचार्य राम जन्मभूमि आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिसका उद्देश्य अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए था। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक विशेषज्ञ गवाह के रूप में गवाही दी और तुलसीदास के दोहाशतक से एक श्लोक का हवाला दिया, जिसमें राम मंदिर को तोड़ने का उल्लेख था। उनके इस योगदान को आंदोलन की सफलता में महत्वपूर्ण माना जाता है।


अपने व्यापक ज्ञान और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के माध्यम से, जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने लाखों लोगों का जीवन प्रभावित किया है उनके अनुयायी उन्हें एक संत के रूप में सम्मान देते हैं जो न केवल शास्त्रों का गहन ज्ञान रखते हैं बल्कि दैनिक जीवन में उनके अनुप्रयोग का मार्गदर्शन भी करते हैं। उनकी रचनाएँ हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए एक मूल्यवान संसाधन हैं और आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।


यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य विवादास्पद भी रहे हैं उनके कुछ दार्शनिक विचार और व्याख्यान मुख्यधारा के हिंदू मत से भिन्न हैं। हालांकि, उनके अनुयायी उनकी विद्वत्ता और आध्यात्मिक निष्ठा पर अटूट विश्वास रखते हैं।जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन और कार्य विद्वत्ता और आस्था के एक अद्वितीय संगम का प्रतीक है। उनकी कहानी दृढ़ संकल्प

जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हनुमान चालीसा को गलत बताया | Jagadguru Rambhadracharya ne galat bataya 

video credited by tv9 bharatvarsh 

जिस हनुमान चालीसा को आज तक किसी ने अशुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं की उसको जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने संशोधन करते हुए चार गलतियां निकाली है ।

पहला है "शंकर सुमन केसरी नंदन "
इसका अर्थ यह होता है कि हनुमान जी शंकर जी के पुत्र हैं जो गलत है रामभद्राचार्य जी ने कहा है कि शंकर सुमन नहीं शंकर स्वयं ही हनुमान है इसीलिए इसका सही अर्थ होता है "शंकर स्वयं केसरी नंदन"

दूसरी गलती हनुमान चालीसा की 27 वा चौपाई 
"सब पर राम तपस्वी राजा" इसको भी अशुद्ध बोला गया है।
जबकि इसका शुद्ध उच्चारण होता है "सब पर राम राज फिर ताज" होता है

हनुमान चालीसा की तीसरी गलती 32 में चौपाई में "राम रसायन तुम्हारे पास सदा रहो रघुवर के दासा "

शुद्ध उच्चारण "सादर रहो रघुवर के दासा" ऐसा बोला जाना चाहिए । 

चौथी और अंतिम गलती हनुमान चालीसा की 38वीं चौपाई में लिखा है "जो सतबार पाठ कर कोई" जगह "यह सतबार पाठ कर जोही" पढ़ा जाना चाहिए।

अब यह बात कितनी प्रमाणिक है इसको तो जगतगुरु ही जान सकते हैं इस विषय पर आप क्या कहना चाहते हैं कमेंट कर सकते हैं

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