10 अप्रैल 2019

4 ved | जानिये चार वेद में क्या क्या लिखा है

rig veda | yajurved | samved | atharva ved

ऋग्वेद | सामवेद | यजुर्वेद | अथर्ववेद 

जिसने चार वेद को थोडा भी समझ लिया उसे कुछ समझाने की जरुरत नहीं  वेद जिसको आता है वो महान हैं 
जिन्होंने कभी वेद को  ved हमारे धर्म ग्रंथों को जानने की कोशिश नहीं की वही लोग सबसे ज्यादा कुतर्क करते हैं

 वे कुतर्की लोग  एसा सोचते हैं सनातन धर्म का आधार वेद ved को समझेंगे जानेंगे तो छोटे हो जायेंगे। आजकल के युवा पीडी भी हमारे सनातन परंपरा को अपनाने से परहेज करने लगे हैं 



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what is ved वेद क्या है,


वेद क्या है? what is ved सामान्य रूप से वेद शब्द  विद धातु से बना हुआ है जिनका 4 अर्थ होता है ज्ञान,सत्ता, लाभ और विचरण जिसके कारण मानव सभी सत्य विधाओं से ज्ञान प्राप्त करता है और वही मनुष्य भविष्य में जाकर विद्वान होता है उसी को वैदिक पंडित कहते हैं 

हिंदू धर्म के वेद ही मूल स्रोत  होने के कारण वेदों का महत्व सबसे ज्यादा है हमारे  सनातन धर्म में स्थित विचारधारा से ओतप्रोत है वेद सिर्फ आर्यों के ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के लिखित रूप में उपलब्ध एक प्राचीनतम ग्रंथ  है

 विश्व के अनेक विद्वानों ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है शताब्दियों तक भारतीयों ने वेदों को अपने मस्तिष्क में याद रख कर उन्हें जीवित किया

वेद को श्रुति भी कहते हैं क्योंकि वेदों को श्रुति कहने के पीछे प्राचीनकाल में गुरु और शिष्य परंपरा के माध्यम से वेदों का अध्ययन होता था और शिष्य गुरु द्वारा सुनाए गए मंत्रों को सुनकर याद रखते थे इसीलिए वेद  को श्रुति भी कहते हैं


 गुरु ने अपने शिष्यों केसामने वेदों का उच्चारण किया और शिष्यों ने अपने कानों से अर्थात श्रुति से उसे सुना उसका शिष्यों ने आवृत्ति किया और उस गुरुद्वारा सुने हुए मंत्र  को याद किया कालांतर में जब वही वेद पाठी शिष्य बड़े होकर गुरु बनते थे

 तो वह भी अपने नए शिष्यों को ठीक इसी प्रकार से वेदों का पठन-पाठन कराया  करते थे जिसका फल स्वरुप यह श्रुति अर्थात वेद ved  इसी माध्यम से सदा के लिए शुद्ध बने रहे

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type fo ved | वेदों के प्रकार

rig veda | ऋग्वेद 


type fo veda वेदों के प्रकार
char ved
वेद चार प्रकार के होते हैं ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद सबसे पहले बात करते हैं ऋग्वेद की ऋग्वेद rig veda आर्यों की सबसे  प्राचीन पुस्तक है  जिसमें सभी प्रकार के देवी देवताओं की स्तुति की गई है

 यह भी दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग अष्टक क्रम  है जो 8 अष्टको में विभक्त है हर एक अष्टक में 8 अध्याय हैं अध्याय में भी वर्ग है और वर्ग रिचाओं के समुदाय को कहते हैं


 ऋग्वेद में लगभग 5 मंत्रों का एक वर्ग होता है ऋग्वेद में कुल 2006 वर्ग हैं ऋग्वेद का द्वितीय भाग मंडल क्रम है जिसमें 10 मंडल हैं इसमें भी कई अनुवाक है जो मंत्र अथवा ऋचा युक्त सूक्त पर आधारित है इस प्रकार से कुल 85 अनुक्रमांक हैं तथा 1017 सूक्त है इनमें 11सूक्त शामिल नहीं है नहीं किया गया है जो बालखि कहलाते हैं
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 सबसे मजे की बात ऋग्वेद के द्वितीय से सप्तम मंडल तक अंश वंश मंडल कहलाता है जिनके ऋषि क्रमश विश्वामित्र वादेवअत्रि भारद्वाज और वशिष्ठ है ऋग्वेद का पूरा नवम मंडल सोम मंडल सोम देवता के विषय में चर्चित होने के कारण यह मंडल पवमान मंडल कहलाता हैअनेक विद्वानों ने इसके प्रथम और दशम मंडल जिनमें 191 191 सुक्त हैं इसको आधुनिक माना है

 ऋग्वेद में अनेक देवी देवताओं को अलग अलग ऋषि-मुनियों  ने अत्यंत सुंदर शब्दों में स्तुतिकी  है इन शब्दों का प्रयोग यज्ञ के अवसर में किया जाता था जिसके कारण कुछ संवाद सूक्त भी मिलते हैं


 जैसे यम यमी संवाद  उर्वशी संवाद सरमा पणी संवाद आदि जिन में अनेक विद्वानों ने संवाद के रूप में अपने विचार व्यक्त किए हैं इन संवाद सूत्रों की संख्या 20 है इनके अलावा ऋग्वेद में कई स्थानों में दार्शनिक सूक्त भी  मिलते हैं जिनसे हमारे ऋषियों का मौलिक चिंतन हमारे सम्मुख उत्पन्न होता है।

यजुर्वेद yajurved


यजुर्वेद के दो संप्रदाय हैं ब्रह्मा और आदित्य नाम से इन्हीं दोनों को क्रमशकृष्णा यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद कहा जाता है कृष्ण यजुर्वेद की प्रधान शाखा तेतरीय है जिसमें गद्यऔर पद्य दोनों का वर्णन मिलता है

 शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेही संहिता बहुत प्रसिद्ध है इसमें किसी प्रकार का गद्य नहीं है शुक्ल यजुर्वेद yajur vedaके मंत्र विभिन्न प्रकार के यज्ञों और कर्मकांड के लिए उपयोग किए जाते हैं जो अनेक फलों की प्राप्ति के लिए विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों द्वारा किया जाता है 


samved | सामवेद 


सामवेद ऐसा माना जाता है सामवेद स्वरों का वेद है संगीत का वेद  है  इसके मंत्र विविध  स्वरों में गाए जाते हैं
 सामवेद के आर्चिक और गायन रूप में मुख्य दो प्रधान भाग हैं ऋषि पतंजलि ने सामवेद वेद ही जीवन का सार ऐसा बोलकर पुराणों का यह कथन सिद्ध कर दिया है

 यदि जीवन में आनंद चाहिए रस चाहिए खुशी चाहिए तो वह सब हमें सामवेद से ही मिल सकता है सामवेद की महिमा अपरंपार है सामवेद की लगभग 1000  शाखाएं हैं गायन प्रधान सामवेद संगीत की सूक्ष्मता को ध्यान में रखते हुए यह संख्या कल्पित नहीं लगती


 ऋषियों ने सामवेद पद्धति को  चार प्रकार की मानी हैगेय ,आरण्यक,ऊह ,उह्य हमारे भारतीय संगीत शास्त्र का मूल इन्हीं शाम गायन ओन पर आधारित है इनके प्रस्ताव, उद्गीथ, प्रतिहार ,उपद्रव व निधन रूप से 5भाग होते हैं

atharva ved | अथर्ववेद 

अथर्ववेद को इस संसार में सबसे ज्यादा फल देने वाला वेद माना गया है यज्ञ के संस्कार के लिएअथर्ववेद को ही आवश्यक माना जाता है पुरोहित राजा के शांति और यज्ञ कार्यों का संपादन अथर्ववेद द्वारा ही  करते हैं
इस वेद को ब्रह्मा वेद भी कहते हैं

 अथर्व शब्द का अर्थ अहिंसा वृत्ति से मन की स्थिरता प्राप्त करने वाला होता है पहले के विद्वानों के अनुसार सुख उत्पन्न करने वाले अच्छे जादू टोना के लिए अथर्ववेद के मंत्रों का प्रयोग अधिक मात्रा में होता है इस प्रकार सामान्य जन के लिए अथर्ववेद atharwa ved बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है


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